देहरादून। शर्म है कि आती नहीं… सात हजार, सात हजार और सिर्फ सात हजार।
उत्तराखंड को देशभर में जैविक उत्पाद के क्षेत्र में नंबर वन का दर्जा दिलाने वाले जैविक मास्टर ट्रेनर्स के भविष्य के साथ उत्तराखंड में खिलवाड़ किया जा रहा है।
20-20 साल से कृषि विभाग में नौकरी कर रहे जैविक मास्टर ट्रेनर्स से जैविक उत्पादों की गुणवत्ता को चेक करने के नाम पर पूरा काम लिया जाता है।
प्रदेश की 95 विकास खंडों में वर्तमान में 88 मास्टर ट्रेनर जैविक खेती के प्रचार प्रसार में जमीनी स्तर से काम करते आ रहे हैं। लेकिन उन्हें महीने के अंत में मिलता क्या है मात्र सात हजार रुपए। यह पैसा उन्हें आज से नहीं 10 सालों से मिल रहा है।
सभी मास्टर ट्रेनर्स कृषि मंत्री सहित अपने विभाग के आला अफसरों के आगे गिड़गिड़ा कर थक गए हैं कि उन्हें मेहनताना ज्यादा दिया जाए जो अभी पैसा उन्हें मिल रहा है इससे परिवार का गुजारा नहीं होता है। लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही है
जैविक मास्टर ट्रेनर्स की मजबूरी इतनी बनी कि जब उनकी मांगे नहीं मानी गई तो उनको कार्य बहिष्कार करने को मजबूर होना पड़ा है। आज पत्रकारों से बातचीत में जैविक मास्टर ट्रेनर्स कृषि संघ के अध्यक्ष हरिमोहन चौहान ने प्रदेश के मास्टर्स ट्रेनर्स का दुखड़ा सुनाया।
उनका कहना था कि सभी जैविक मास्टर ट्रेनर से पूरा काम लिया जाता है लेकिन उनके मानदेय में कोई वृद्धि नहीं की गई है और उम्मीद की जाती है कि प्रदेश को जैविक उत्पाद में हमेशा नंबर वन लाया जाए। लेकिन जब उनका परिवार ही नहीं पड़ेगा तो वह कैसे काम करेंगे। इसके लिए सरकार को उन्हें सुनना चाहिए।