देहरादून। कौन कहता है आसमां में छेद नहीं हो सकता, जरा एक पत्थर तो तबीयत से उछालो तो यारों।…. जी हां इन पंक्तियों को चरितार्थ कर रही हैं देहरादून की दिलराज कौर। उनकी हिम्मत की इसलिए भी दाद देनी होगी क्योंकि दिलराज, दिव्यांग होने के बावजूद बड़े से बड़ा मुश्किल काम करने से पीछे नहीं हटती है। यही कारण है कि आज उत्तराखंड की इस बेटी दिलराज कौर का नाम अंतरराष्ट्रीय पिस्टल शूटिंग में सम्मान के साथ लिया जाता है।
दिलराज कौर प्रथम भारतीय अंतरराष्ट्रीय पिस्टल shooter, प्रथम भारतीय ज्यूरी ( पैरा ), प्रथम भारतीय स्पोर्ट्स एजुकेटर है। पिछले साल कोरोना काल में कई संस्थाओं के साथ मिलकर जरूरतमंदों को सूखे राशन, लंगर और दवाईयों की सेवा कर रही है। दिव्यांग और बुजुर्गों के घर राशन पहुंचाने के साथ-साथ सरदार रविंदर सिंह आनंद की टीम में लावारिस डेड बाडीज के दाह संस्कार में भी सेवा कर रही है। विजय राज की संस्था में भी जरूरत मंदों को दवाईयों को पहुंचाती है।
कोरोना महामारी के इस दौर में हर आदमी पीड़ित हो गया है। कुछ की जिंदगियां अस्पतालों में लड़ रही है तो कुछ काम धंधे और नौकरियां खत्म हो जाने के कारण रोटी के लिए भी मोहताज हो गए हैं। ऐसे में कई संस्थाएं आगे आकर सभी जरूरतमंदों की सेवा कर रही है।
इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय पिस्टल शूटर दिलराज कौर भी पीछे नहीं रही। वह समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करने को अपनी माता वरिष्ठ समाजसेवी गुरदीप कौर को प्रेरणा मानती हैं। विश्व स्तर पर भारत का नाम रोशन करने वाली दिलराज कहती हैं कि अपने लिए जिए तो क्या जिए। इसीलिए वह बिना डर के लावारिस शवों के दाह संस्कार में भी आगे आकर सेवा कर रही है। साथ ही देहरादून की कई सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर इस समय हर जरूरतमंद के घरों में राशन पहुंचाने का भी काम कर रही हैं और समय निकालकर बच्चों को निशुल्क पढ़ाने का काम भी करती हैं।
दिलराज कौर ने देहरादून के खिलाड़ियों और सभी सक्षम लोगों से भी अपील की है कि वह आगे आकर इस समय सभी जरूरतमंदों की मदद करें। क्योंकि यही वह समय है जिसमें लोगों को मदद की आवश्यकता है। इसलिए चाहे दिन हो या रात वह अपनी माता के साथ हर जरूरतमंद की सेवा के लिए तत्पर रहती हैं।
Mr report
I request you to please delete my daughter pic
Please clear me…which photo…I will delete.