28.2 C
Dehradun
Tuesday, October 15, 2024
Advertisement
Homeउत्तराखंडअकेले चीनी सैनिकों को मार गिराने वाले जसवंत सिंह रावत की याद...

अकेले चीनी सैनिकों को मार गिराने वाले जसवंत सिंह रावत की याद में जसवंतगढ़ जिले के गठन की मांग तेज

 

 

देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य के मध्य में स्थित पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा जिलों को उक्त क्षेत्र अपने विशिष्ट ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक महत्व के बावजूद न केवल अत्यंत पिछड़ा है बल्कि प्रशासनिक उपेक्षा के कारण राज्य और केन्द्र सरकारों द्वारा संचालिक आर्थिक विकास और समाजकल्याण की विभिन्न विकास योजनाओं के लाभ से भी वंचित है। इस कारण इस क्षेत्र की जनता एक लम्बे अरसे से ‘जसवंतगढ़’ नाम से नया जिला की मांग को लेकर आंदोलित है।

उत्तराखण्ड में कत्यूरी राजवश के शासनकाल से लेकर स्वतंत्रता संग्राम और उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के जुझारु जन आंदोलन तक इस क्षेत्र के लोगों की अग्रणी भूमिका रही है। वर्तमान समय में भी इस क्षेत्र के लोग भारत की सैन्य और शासनिक सेवाओं के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। इसके साथ ही राज्य के माध्यम में स्थित होने के कारण यह क्षेत्र गढ़वाल-कुमाऊ की साझी सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत के रुप में भी जाना जाता है।

इसके ठीक विपरीत यह क्षेत्र आज भी न केवल शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, यातायात एवं संचार सेवा आदि मूलभूत सुविधाओं से वंचित है बल्कि आर्थिक एवं सामाजिक विकास की योजनाओं का लाभी भी इस क्षेत्र के लोगों को नहीं मिल पा रहा है। इससे क्षेत्र में उपलब्ध भौतिक संसाधनों का सदुपयोग भी नहीं हो पाया है, उल्टे जीवनयापन की बेहतर सुविधाओं और उज्जवल भविष्य की उम्मीद पर यहां के लोगों ने महानगरों और मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन किया है। विदित हो कि यह क्षेत्र उत्तराखण्ड के उन क्षेत्रों में शुमार है जहां से सर्वाधिक पलायन हुआ है, इसकी पष्टि क्षेत्र में स्थित सैकड़ों ‘भुतहा’ अर्थात निर्जन गांवों से होती है।

स्पष्ट रुप से, इसका मुख्य कारण यहां से जिला मुख्यालय की दूरी और प्रशासनिक उपेक्षा रहा है। विभिन्न ऐतिहासिक और लोक आख्यानों के अनुसार गढ़वाल और कुमाऊ का दोसान कहा जाने वाला यह क्षेत्र ब्रिटिश शासनकाल से पहले कृषि, पशुपालन और कुटीर एवं लघु उद्योगों के लिए प्रसिद्ध था, जो आज केवल ऐतिहासिक अध्ययन का विषय बनकर रह गए हैं। प्रशासनिक उपेक्षा का आलम यह है कि कोई भी प्रशासनिक अधिकारी इस क्षेत्र में अपनी नियुक्ति नहीं करना चाहता और जो नियुक्त हैं उनमें से अधितर आधे से अधिक समय जिला मुख्यालय पौड़ी गढ़वाल अथवा राज्य की राजधानी में ही बिताते हैं।

जन सामान्य के लिए भी अपने जिला मुख्यालायों तक पहुंचना मुश्किल है। पौड़ी गढ़वाल हो या अल्मोड़ा इस क्षेत्र के लोगों के लिए अपने जिला मुख्यालयों से ज्यादा सुविधाजनक देहरादून और दिल्ली है। इस पूरे क्षेत्र में भारी संख्या में ऐसे लोग हैं जो कभी मुख्यालय नहीं गए हैं। बहुत जरुरी होने पर ही वह अपने जिला मुख्यालय जाने का साहस करते हैं। इस स्थिति में यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि क्षेत्र के लोगों को कृषि, पशुपालन, बागवानी, हस्तशिल्प, ग्रामीण विकास और स्वरोजगार की विभिनन योजनाओं का क्या हश्र हो रहा है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि जसवंत गढ़ नाम से नए जिला का गठन कर इन समस्याओं को हल किया जा सकता है।

बीते 30 वर्षों से उठ रही है जिला बनाने की मांग

पोड़ी गढ़वाल के पांच ब्लीको ननीडांडा, रेनीडांडा, रिखीखाल, बीरोखाल, पोखड़ी एव थलीसैंण और अल्मोड़ा जिले के स्लट ब्लॉक को मिलाकर नया जिला बनाने की मांग बीते 3 दशकों से निरंतर चली आ रही है। इस क्षेत्र में पिछड़ेपन को देखते हुए सर्वप्रथम 1991 में ‘नैनीडांडा’ नाम से अलग जिला बनाए जाने की मांग उठी थी, हजारो की संख्या में लोगों के हस्ताक्षरित ज्ञापन राज्य सरकार (उत्तर प्रदेश) को प्रेषित कर वस्तुस्थिति शासन के समक्ष रखी थी। लेकिन 1996 में जब उत्तर प्रदेश में कई नए जिले बनाऐ गए थे तो इस मांग की अनदेखी कर दी गई थी। वर्तमान उत्तराखंड राज्यों के चार जिलों रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, चंपावत और शहीद ऊधमसिंह नगर जिलों का गठन उसी वर्ष किया गया था। यही मांग वर्ष 2007-8 में स्थानीय जनता ने तत्कालीन पुनः राज्य सरकार (उत्तरखंड) के समक्ष रखी, जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मे.ज. (से.नि.) भुवन चंद्र खंडूड़ी ने सहमति भी प्रदन की थी, लेकिन जब उन्होंने राज्य में चार नए जिले – डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार और यमनोत्री बनाने का प्रस्ताव पारित किया तो जानबूझकर इस क्षेत्र की उपेक्षा की गई और कहा गया कि पौड़ी गढ़वाल को काटकर जो कोटद्वार जिला बनाया जाएगा। उसमें मुख्यरूप से यह भूभाग शामिल होगा। यदि कोटद्वार को नया जिला बनाकर पौड़ी गढ़वाल के उक्त पांच ब्लॉको उसमें शामिल किया जाता है तो इससे इस क्षेत्र को किसी तरह का लाभ नही मिल सकता, क्योंकि कोटद्वार यहां के लोगो के लिए उतना ही दूर और अव्यावहारिक है, जितन पौड़ी। पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा दोनों ही जिलों के लोगों के आवाजाही का गुख्यमार्ग रामनगर से होकर जाता है, न कि कोटद्वार से। दूसर, केवल पौड़ी गढ़वाल के भूक्षेत्र को मिलाकर नया प्रस्तावित कोटद्वार जिला बनाए जाने से इस क्षेत्र की साझी सांस्कृतिक-सामाजिक की भी उपेक्षा होगी। यह सोचते हुए 2014 में कुछ जन संगठनो ने धूमाकोट जिला बनाने की मांग उठाई तो कुछ, रामगंगा, नाम जिला बनाने के नाम पर सक्रिय हुए। उसी वर्ष कई जनसंगठनो ने मिलकर इस क्षेत्र को नया जिला बनाए जाने की मांग पर देहरादून में विशाल प्रदर्शन किया।

विगत आंदोलनों के अनुभवो और उनकी ऊर्जा को संग्रहीतकर इधर इस क्षेत्र को ‘जसवंतगढ़’ नाम से जिला बनाने की मांग तेज हुई है, जो निरंतर मुखर होती जा रही है। इस मांग और नाम से क्षेत्र की बहुसंख्य जनता पूर्णतः सहमत है और सभी संगठन ‘जसवंत गढ़ जिला संघर्ष समिति’ के बैनरतले एकजुट हैं। स्थानीय स्थर पर लगभग सभी राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता भी इस पर सहमत हैं।

नए जिले का नाम जसवंत गढ़ ही क्यो ?

प्रस्तावित नए जिले का नाम भारत-चीन युद्ध (1962) के अमर शहीद जसवंत सिंह रावत के नाम पर रखा गया है। गढ़वाल राइफल के राइफलमैन बीरौखाल वि०खं० ग्राम बाड़ियों के वीर सपूत थे। कहा जाता है कि भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने चीनी सेना की कई चौकियों को नेस्तनाबूत करते हुए सैकड़ो सैनिको को मार गिराया था। अतं में जब उनके पास कोई असलाह नहीं बचा और चीनी सैना से घिर गए थे तो स्वयं आत्मबलिदान कर दिया। भारतीय सैना के व एकमात्र ऐसे वीर जवान रहे हैं, जिन्हें मरणोपरांत प्रमोशन मिलता रहा और नियमित अवकाश मिलता रहा है। कुछ ही समय पूर्व मेजर जनरल के पद से रिटायर किया गया है। उनकी स्मृति में अरूणाचल प्रदेश में ‘जसवंत गढ़’ नाम से भव्य स्मारक बनाया गया है, जहां प्रतिदिन दर्जनों जवान ड्यूटी देते है और हजारों सैनिक उनके दर्शन हेतु वहां जाते हैं। हालांकि महावीर चक्र से सम्मलित अमर शहीद जसवंत सिंह रावत से जुड़े कई किस्से भारतीय सेना में प्रचलित हैं, जैसे-वे अभी भी नियमित अपनी ड्यूटी देते है, अपने दायित्व के प्रति उदासीन जवानों को डांट-डपट देते हैं, आदि-आदि। लेकिन पौड़ी गढ़वाल के उक्त पांच और अल्मोड़ा के ब्लॉक को मिलाकर ‘जसवंत गढ़’ नाम से नया जिला बनाने पर क्षेत्र के सभी लोगो की सहमति है।

यह पूरा क्षेत्र सैन्य बाहुल्य है। इस क्षेत्र के हजारों लोग गढ़वाल राइफल और कुमाऊं रेजिमेंट सहित सेना के विभिन्न कोरों में कार्यरत है और हजारों की संख्या में सेवानिवृत्त पूर्व सैनिक हैं। यही नहीं भारतीय सेना में जनरल, लेपिनेन्ट जनरल और मेजर जनरल तक कई वरिष्ठ अधिकारी इसी क्षेत्र से रह हैं। इस क्षेत्र को जसवंत गढ़ नाम से जिला बनाये जाने पर वर्तमान और पूर्व सैनिक सहित जन सामान्य की पूर्ण सहमति हैं।

अतः महोदय से विनम्र अनुरोध है कि उत्तराखण्ड राज्य के इस भूभाग के ऐतिहासिक, सामाजिक और भौगोलिक महत्व को और इसके पिछड़ेपन को देहाते हुए जसवंतगढ़ जिले का गठन कर महत्त्वपूर्ण निर्णय ही राज्य की जनता में भी यह संदेश जायेगा कि आपके नेतृत्व में राज्य सरकार जनहित में निर्णय लेकर बड़ा कदम उठाने में भी सक्षम है।

समिति की मांग है कि जिला गठन के कार्यवाई में सुझाव के लिए समिति के पदाधिकारियों को भी शामिल किया जाय।

• क्षेत्रीय विकास के लिए छोटी प्रशासनिक इकाई जरूरी है।

• नया जिला गठन में मुख्य विचागों को सभी विकासखण्डों में स्थापित किया जाय।

आशा है उक्त विषयांतर्गत जसवंतगढ़ जिले का गठन करने सम्बन्धी निर्णय से अवगत करायेंगे।

आर.पी ध्यानी, संयोजक

कर्नल राजदर्शन सिंह रावत, अध्यक्ष

कर्नल राम रतन नेगी, उपाध्यक्ष

कैप्टन जी. एस. नेगी, उपाध्यक्ष

आलम सिंह रावत, महासचिव

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments